चैत्र प्रतिपदा को वर्षारंभ दिन अर्थात नववर्ष क्यों मनाए?

चैत्र प्रतिपदा को वर्षारंभ दिन अर्थात नववर्ष क्यों मनाए?
वर्षारंभ का दिन अर्थात नववर्ष दिन। इसे कुछ अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे- संवत्सरारंभ, विक्रम संवत् वर्षारंभ, वर्षप्रतिपदा, युगादि, गुडीपडवा इत्यादि। इसे मनाने के अनेक कारण हैं।




जानिए कब से होगा हिंदू नववर्ष शुरू?

इस बार हिंदू नववर्ष 22 मार्च 2023 से शुरू होगा. हिंदू नववर्ष पर शहरों और गांवों में सर्व समाज की शोभायात्रा निकाली जाएगी. भारतीय संस्कृति एवं कालगणना विश्व में सबसे प्राचीन है. कालगणना में ग्रह नक्षत्रों, आकाशीय पिंडों की गति का अत्यंत गहराई से किया गया अध्ययन और निकाला गया निष्कर्ष खगोलीय वैज्ञानिकों का मानव जाति को अनुपम उपहार है. आइए आपको बताते हैं कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर ऐसा क्या खास है कि इस दिन को हिंदू नववर्ष मनाया जाता है.

  • जगतपिता ब्रह्माजी ने इसी दिन सृष्टि का निर्माण किया था. अनुमान के मुताबिक, करीब 1 अरब 14 करोड़ 58 लाख 85 हजार 123 साल पहले सृष्टि की रचना हुई थी.
  • महाराजा विक्रमादित्य ने इसी दिन विक्रमी संवत का शुभारंभ किया था.
  • इसी दिन देवी दुर्गा की आराधना का नवरात्रि महापर्व प्रारंभ होता है.
  • सतयुग में प्रभु श्री रामचंद्रजी का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था.
  • न्याय प्रणेता महर्षि गौतम की जयंती भी इसी दिन मनाई जाती है.
  • चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही महाराजा युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ था.
  • आराध्य देव वरुणावतार भगवान झूलेलाल साईं का अवतरण दिवस भी मनाया जाता है.
  • गुरु अंगद देव साहिब का अवतरण भी इसी दिन हुआ था.
  • महर्षि दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की थी.

वर्षारंभ मनाने का नैसर्गिक कारण
भगवान श्रीकृष्ण अपनी विभूतियों के संदर्भ में बताते हुए श्रीमद्भगवद्गीता में कहते हैं
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् । मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः ।। (श्रीमद्भगवद्गीता – 10.35)

इसका अर्थ है, 'सामों में बृहत्साम मैं हूं। छंदों में गायत्री छंद मैं हूं। मासों में अर्थात्‌ महीनों में मार्ग शीर्ष मास मैं हूं और ऋतुओं में वसंतऋतु मैं हूं।'
सर्व ऋतुओं में बहार लानेवाली ऋतु है, वसंत ऋतु। इस काल में उत्साहवर्धक, आह्लाददायक एवं समशीतोष्ण वायु होती है। शिशिर ऋतु में पेडों के पत्ते झड़ चुके होते हैं, जबकि वसंत ऋतु के आगमन से पेडों में कोंपलें अर्थात नए कोमल पत्ते उग आते हैं, पेड-पौधे हरे-भरे दिखाई देते हैं । कोयल की कूक सुनाई देती है। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्णजी की विभूतिस्वरूप वसंत ऋतु के आरंभ का यह दिन है।
वर्षारंभ मनाने का पौराणिक कारण
- इस दिन भगवान श्रीराम ने बाली का वध किया था

वर्षारंभ का अतिरिक्त विशेष महत्व
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन अयोध्या में श्रीरामजी का विजयोत्सव मनाने के लिए अयोध्यावासियों ने घर-घर के द्वार पर धर्मध्वज फहराया। इसके प्रतीकस्वरूप भी इस दिन धर्मध्वज फहराया जाता है। महाराष्ट्र में इसे गुडी कहते हैं।
नववर्षारंभ दिन मनाने का आध्यात्मिक कारण
भिन्न-भिन्न संस्कृति अथवा उद्देश्य के अनुसार नववर्ष का आरंभ भी विभिन्न तिथियों पर मनाया जाता हैं। उदाहरणार्थ, ईसाई संस्कृति के अनुसार इसवी सन् 01 जनवरी से आरंभ होता है, जबकि हिंदू नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है। आर्थिक वर्ष 01 अप्रैल से आरंभ होता है, शैक्षिक वर्ष जून से आरंभ होता है, जबकि व्यापारी वर्ष कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है। इन सभी वर्षारंभों में से अधिक उचित नववर्ष का आरंभ दिन है, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा।

ब्रह्मांड की निर्मिति का दिन
ब्रह्मदेव ने इसी दिन ब्रह्मांड की निर्मिति की। उनके नाम से ही ‘ब्रह्मांड’ नाम प्रचलित हुआ। सत्ययुग में इसी दिन ब्रह्मांड में विद्यमान ब्रह्मतत्त्व पहली बार निर्गुण से निर्गुण-सगुण स्तर पर आकर कार्यरत हुआ तथा पृथ्वी पर आया।
सृष्टि के निर्माण का दिन
ब्रह्मदेव ने सृष्टि की रचना की, तदूपरांत उसमें कुछ उत्पत्ति एवं परिवर्तन कर उसे अधिक सुंदर अर्थात परिपूर्ण बनाया। इसलिए ब्रह्मदेवद्वारा निर्माण की गई सृष्टि परिपूर्ण हुई, उस दिन गुडी अर्थात धर्मध्वजा खडी कर यह दिन मनाया जाने लगा।
साढ़े तीन मुहूर्तों में से एक
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अक्षय तृतीया एवं दशहरा, प्रत्येक का एक एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का आधा, ऐसे साढ़े तीन मुहूर्त होते हैं। इन साढ़े तीन मुहूर्तों की विशेषता यह है कि अन्य दिन शुभकार्य करने के लिए मुहूर्त देखना पड़ता है; परंतु इन चार दिनों का प्रत्येक क्षण शुभ मुहूर्त ही होता है।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व 

  1. इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की।
  2. सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है।
  3. प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन यही है।
  4. शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र का पहला दिन यही है।
  5. सिखो के द्वितीय गुरू श्री अंगद देव जी का जन्म दिवस है।
  6. स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की एवं कृणवंतो विश्वमआर्यम का संदेश दिया।
  7. सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए।
  8. राजा विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों और शकों को परास्त कर भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना। शक संवत की स्थापना की।
  9. युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ।
  10. संघ संस्थापक प.पू.डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म दिन।
  11. महर्षि गौतम जयंती



Yogesh shukla (GSCT Institute)
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